असल भगवदवतारी की पहचान कैसे ?

असल भगवदवतारी की पहचान कैसे ?
आप सत्यान्वेषी एवं सद्भावी पाठक और श्रोता बंधुओं ! आज कल ग्रन्थों की कमी नहीं है, बल्कि यदि कहा जाय कि धर्म पर अथवा किसी भी विषय पर ग्रन्थों या पुस्तकों की बाढ़ सी आयी हुई है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। किसी भी विषय को चाहे वह आर्थिक हो, राजनैतिक हो, सामाजिक हो अथवा धार्मिक आदि-आदि कोई भी हो। वर्तमान पुस्तकों एवं ग्रन्थों को देखने से एक प्रकार का तरस आता है। अफसोस होता है कि ऐसे पुस्तकों एवं ग्रन्थों, जो समाज को दिग्भ्रमित करते हुये अपने लक्ष्य से गिरा देते हों-----लक्ष्य के प्रतिकूल ले जाते हों अथवा लक्ष्य से वंचित करा देते हों, तो ऐसे पुस्तकों या ग्रन्थों से तो अच्छा था कि पुस्तकों और ग्रन्थों को लिखा ही न गया होता। ‘’ पुस्तक एवं ग्रंथ का न लिखना उतना बुरा नहीं है जितना कि गलत एवं दिग्भ्रमित करने वाले पुस्तक एवं ग्रंथ का लिखना ।‘’
आप सद्भावी भगवत् खोजी बंधुओं को भगवान और भगवदवतार से सम्बंधित अनेकानेक मतों के प्रचलन से नाना प्रकार के भ्रांतियों का जो सामना करना पड़ रहा है, उन्हीं के समाधान हेतु ‘’असल भगवदवतारी की पहचान कैसे?’’ नामक यह धर्म पुष्पिका आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। सम्भावना ही नहीं अपितु विश्वसनीयता भी है कि आप को भगवत् खोज-प्राप्ति जानकारी-परिचय करने-होने में प्रस्तुत धर्म पुष्पिका से काफी सहूलियत होगी, यदि भगवत् कृपा आप पर रही। इस प्रकार की बातें तो प्रायः हर मतावलम्बी ही अपनी-अपनी पुस्तक-पुस्तिकाओं में लिखते-लिखाते हैं कि हमारे अमुक पुस्तक से आपको समाधान मिलेगा। यहा वैसे ही हम भी लिख-लिखा रहे हैं कि असल भगवदवतारी के परिचय-पहचान में हमारी यह धर्म पुष्पिका सबके लिए समाधानदाता होगी। अब इसका निर्णय तो आपको ही लेना होगा कि वास्तव में किसका और कौन सा मत असल या वास्तविक है। कहने को तो सब अपने को अच्छा और सही कहेंगे ही, उसी में मुझे भी गिन लीजिए। किन्तु एक बात जरा आप भी सोचें कि मैं हूँ अथवा कोई और है, यदि नकल वाला भी अपने को असल ही कहता हो, तो असल वाला अपने को क्या कहे? असल वाले को भी तो अपने को असल ही कहना होगा !
वास्तव में वास्तविक सत्य इतना आसान नहीं होता कि जो चाहे वही जना दे अथवा जैसे चाहा जाय वैसे ही जान लिया जाय। भगवत् कृपा विशेष से सदानंद तो इस बात पर जितना ज़ोर दिया जा सकता है, उससे भी अधिक ज़ोर देता हुआ यह अकाट्य निश्चयात्मक मत प्रस्तुत कर रहा है कि सृष्टि में यदि कोई गूढ़ से भी गूढ़तर बात है तो उसमें सबसे गूढ़तम् इस वास्तविक परम सत्य को जानना-दर्शन करना और पाना ही है।
सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस जब भी वास्तविक परमसत्य की चर्चा भगवत् कृपा से करना चाहते हैं, तो दो बातें प्रमुखतया इनके सामने खड़ी हो जाती हैं। पहली बात यह है कि वास्तविक परम सत्य की जानकारी देने पर पाठक बंधुजनों को सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस एक परम अहंकारी लगने लगता है और दूसरी तरफ दूसरी बात यह है कि सन्त ज्ञानेश्वर भगवद् धर्म या सत्य धर्म का संस्थापक एवं सरंक्षक होने के नाते सत्य से हटकर कुछ लिख ही नहीं सकता, कारण कि सदानन्द नाम वाली यह शरीर तो भगवान के ही कार्य संपादन हेतु भगवान द्वारा ही प्रयुक्त एक यन्त्रवत् मानव आकृति मात्र है, जो सत्य धर्म हेतु ही है।
यह आद्योपान्त सत्य बात है कि सदानन्द नाम-रूप वाला यन्त्रवत् मानव आकृति सत्य ही कहने-बोलने व लिखने हेतु मजबूर है। इसीलिए भगवत् कृपा विशेष के सहारे यह सदानन्द यन्त्रवत् मानव आकृति सत्य ही, एकमात्र परम सत्य ही लिख रहा है। इसे जानना-देखना और समझना, आपके स्वभाव के अनुकूल या प्रतिकूल जैसा लगे वैसा व्यवहार लेना-देना, आप पाठक एवं श्रोता बन्धुजनों पर आधारित है।
यह भी एक वास्तविक सत्य का ही अंश होने के कारण सत्य ही है कि आपके मानने या न मानने से वास्तव में वास्तविक परम सत्य पर कोई असर या प्रभाव पड़ने को नहीं है। यदि असर या प्रभाव पड़ने को है तो वह एकमात्र आपके जीवन पर ही है। इसलिए भगवान के तरफ से ही, भगवत् कृपा विशेष के सहारे ही सदानन्द नाम रूप वाला यन्त्रवत् मानव आकृति जो कुछ वास्तविक परम सत्य को जाना और पाया है तथा भगवत् कृपा विशेष से ही जहाँ तक समझ सका है, आप पाठक एवं श्रोता बंधुओं के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। इसे जानना या समझना तथा अपने जीवन को वास्तविक परम सत्य हेतु समर्पित होता हुआ परम सत्य पर ही कायम रहना-चलना आपकी बात है।
सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक बंधुओं ! इस सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में यदि गोपनीय कोई बात या चीज है तो उसमें सबसे गोपनीय यह वास्तविक सत्य रूप परम सत्य रूप खुदा-गॉड-भगवान ही है; इसमें यदि कोई सूक्ष्माति सूक्ष्म से भी सूक्ष्म कोई बात या वस्तु है तो यह वास्तविक परम सत्य उससे भी सूक्ष्म है; इस ब्रम्हाण्ड में यदि कोई विशालकाय से भी विशालकाय कोई बात या वस्तु है तो उसमें यह वास्तविक परम सत्य उससे भी अति विशालकाय बात या वस्तु है तो इसमें यह वास्तविक परम सत्य उससे भी अति विशालकाय बात या वस्तु है; इसमें यदि कोई शक्तिमान से भी शक्तिमान है तो यह वास्तविक परम सत्य उससे भी अत्यधिक शक्तिमान है; इसमें यदि कोई उत्तम से उत्तम है तो यह उससे भी उत्तम अर्थात् सर्वोत्तम है; यदि इसमें कोई श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतर है तो यह उससे भी अत्यधिक श्रेष्ठ अर्थात् सर्वश्रेष्ठ है; इसमें यदि कोई आसान (सहज) से आसान है तो यह उससे भी आसान (सहज) है; इसमें यदि कोई सुगम से भी सुगम है तो यह उससे भी अत्यधिक सुगम है; इसमें यदि कोई दयालु से भी दयालु है तो यह वास्तविक सत्य उससे भी अत्यधिक दयालु है; इसमें यदि कोई किसी भी विषय-वस्तु-बात या शक्ति-सत्ता वाला भी है तो यह वास्तविक सत्य उससे भी अत्यधिक विषय-वस्तु-बात-या शक्ति-सत्ता वाला अर्थात् परम शक्ति-सत्ता वाला है। यदि सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में कोई सत्य-धर्म-न्याय-नीति वाला से अधिक सत्य-धर्म-न्याय-नीति वाला भी है तो यह वास्तविक सत्य उससे भी अधिक अर्थात् सर्वाधिक सत्य-धर्म-न्याय-नीति वाला है; पुनः यदि शिक्षा, स्वाध्याय और अध्यात्म ज्ञान आदि में चाहे जितना भी अधिक से अधिक जानकारी किसी को क्यों न हो, परंतु इस वास्तविक सत्य में उनसे भी अत्यधिक अर्थात् सर्वाधिक शिक्षा, स्वाध्याय और अध्यात्म की जानकारी है क्योंकि यह वास्तविक सत्य ज्ञान (तत्त्वज्ञान) वाला है अर्थात् इस वास्तविक सत्य का ज्ञान ही वास्तव में वास्तविक तत्त्वज्ञान है और तत्त्वज्ञान ही पूर्ण ज्ञान है। शिक्षा, स्वाध्याय और अध्यात्म ज्ञान रूप तीनों ही तत्त्वज्ञान के अंश मात्र हैं और इन तीनों का ही अंशी एकमेव एकमात्र ही है।
किसी भी मामले में कोई बड़ा से बड़ा, ऊँचा से ऊँचा, उत्तम से उत्तम, सूक्ष्म से सूक्ष्म, शक्तिमान से शक्तिमान, श्रेष्ठ से श्रेष्ठ, आसान से आसान, कठिन से कठिन, सहज से सहज, दयालु से दयालु, न्यायिक से न्यायिक, कठोर से कठोर आदि आदि आदि किसी भी मामले में कोई कितना ही क्यों न हो, यह वास्तविक सत्य उससे भी अत्यधिक अर्थात् उसी मामले में सर्वाधिक है। अन्ततः यही कहना होगा कि यह वास्तविक सत्य अतुलनीय है। इसका कोई समकक्ष नहीं। इसकी कोई बराबरी नहीं, फिर इससे श्रेष्ठ अथवा ऊँचा होने का प्रश्न ही कहाँ पैदा होता है। यही वास्तविक सत्य ही वास्तव में खुदा-गॉड-भगवान भी है और एकमात्र यही ज्ञेय भी है।
बंधुओं ! वास्तव में जो कोई भी इसको जान लेता है, जिज्ञासा-श्रद्धा और अनन्य भक्ति भाव से निष्कपटता पूर्वक इसे जान लेता है, प्राप्त कर लेता है, बोधित हो जाता है, तो वास्तव में उसे कुछ और जानना या पाना शेष नहीं रह जाता। यह वास्तविक सत्य सदा से यानी आदि सृष्टि के आदि से भी पूर्व से यह सदा एक रूप, सदा एक ही नाम, सदा से एक ही धाम तथा एक ही ज्ञान वाला चला आ रहा है तथा अंतिम सृष्टि के अंत के पश्चात् भी एक ही नाम वाला, एक ही रूप वाला, एक ही धाम वाला तथा एक ही ज्ञान वाला भी रहेगा। इसीलिए यह अमर, मुक्त और परमानन्द रूप सदानन्द अद्वेत्तत्त्व बोध वाला है। एकमात्र यही मुक्ति और अमरता देता है। इसी वास्तविक सत्य जिसे परमात्मा, परमेश्वर, परमब्रम्ह, यहोवा, अरिहंत, बोधिसत्त्व, अका लपुरुष, अहूरमजद, सत्पुरुष, खुदा-गॉड या भगवान भी कहते हैं, का वास्तविक परिचय-पहचान हेतु इस धर्मग्रंथ-श्रिंखला सदानन्द मत देखें के अन्तर्गत प्रस्तुत पुष्पिका आपको हस्तगत है।

अतः इस निर्णय हेतु असल भगवदवतारी के परिचय-पहचान हेतु, काफी सावधानी बरतते हुये सबसे पहले तो भगवान क्या है? भगवदवतार क्या होता है? भगवदवतार होता कैसे है? वास्तव में भगवान और भगवदवतार को पाने, जानने व दर्शन करने और परिचय-पहचान प्राप्त करते हुये परखने की प्रमाणिक समझना और देखना-परखना ही होगा। यह सही है कि जब अनेकानेक भगवान और भगवद् अवतार बनने या होने वाले एक साथ ही भू-मण्डल पर हो जाते हैं तो वास्तव में जनमानस को असल को परखने-पहचानने में दिक्कत-परेशानी तो होती ही हैं, फिर भी इससे मुख नहीं मोड़ना चाहिए, क्योंकि जानना-देखना और भक्ति-सेवा-मुक्ति-अमरता हेतु शरणागत रहना ही एकमात्र जीवन का उद्देश्य है। इसी में मानव जीवन की सार्थकता और सफलता है। 

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पुरुषोत्तम धाम आश्रम
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